आधुनिकता के रंग में, मूल्यों से समझौता न करें

Twitter : @todayamit11

रूस की प्रसिद्ध नृत्यांगना इज़ाडोरा डंकन ने अपनी आत्मकथा माय लाइफ में लिखा है ‘मैं बचपन में मिले अभाव और समस्याओं के विशाल पहाड़ की शुक्रगुज़ार हूं। उनके बीच पलते हुए मुझे जिंदगी की जंग जीतने का हौसला आया।

ठीक इज़ाडोरा के कहे इन शब्दों की तरह ही हमारी जिंदगी के रंग, उस जंग को जीतने के लिए  होते हैं जिसमें सुख, दुख, धूप और छांव हमेशा आते जाते रहते हैं। आज भले ही हम 21वीं शताब्दी में जी रहे हों पर हमारी भारतीय संस्कारों को हम चाहकर भी नहीं भूला सकते जिसके कारण ही हम विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं।

रंगीन दुनिया की रंगीन चमक

पर आधुनिकता और ग्लैमर की चकाचौंध वाली इस दुनिया में आज जिस तरह हमारी युवा पीढ़ी अपने मुल्यों से समझौता कर संस्कारों से दिनों दिन दूर होती जा रही है। बात चाहे मेट्रो सिटी की हो या किसी गांव की, संस्कृति को बचाए रखने वाले मूल्यों से आज युवा समझौता कर उन्हें आधुनिकता के रंग में रंगने की हद तक लालायित रहते है।

कुछ लोगों का मानना है कि आधुनिक युवा अपने जन्म से कुछ दशक पहले के युवा जो कि अब उम्र के पढ़ाव पर है उनसे कहीं व्यवाहारिक है। इस बात में उसी हद तक सच्चाई है कि पहले जो युवा मूल्यों आदर्शों और बलिदान के लिए तत्पर रहता था उसी तरह आज का युवा टेक्नोलॉजी, और नई सोच के जरिए भले ही अपनी पहचान बना रहा हो पर संस्कारों की कमी उसे ठीक उसी चौराहे पर लाकर खड़ी कर देती है जहां से वो चला था।

बात बदलते परिवेश में बेहतर शिक्षा और ग्लोबलाइजेशन के चलते ग्लैमर का तड़का लगते ही शुरू होती है जहां एक छोटे से शहर का लड़का या लड़की इस माहौल में खुद को काबिल बनाने के लिए हर जोड़-तोड़ करने में पीछे नहीं रहते, और वो बारिश में मदहोश कर देने वाली गांव की सौंधी मिट्टी की खुश्बू को छोड़ शहर की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में धुंए के उड़ते कालिख में ढालने की पूरी कोशिश करते हैं।

आधुनिकता के रंग में भींगे, मूल्यों को कैसे बचाएं

यहां में अपने एक मित्र अर्णव का जिक्र करना चाहूंगा जो कि फिलहाल लंदन में रहते हैं काफी समय पहले वो भारत में ही रहा करते थे मेरे घर के नजदीक उनके दो बच्चे हैं, वो बच्चे लंदन में ही जन्में और जाह़िर सी बात है उनकी पढ़ाई लंदन भी में हो रही है। पर जब में उन दोनों से मिला तो हैरान रह गया, क्यों की उनकी बातों, रहन-सहन और बोली से कहीं नहीं लगता कि वो लंदन के एक महंगे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हों, पर उनके संस्कार वहीं है जो आज भी कुछ भारतीय परिवारों के बच्चों में यत्र-तत्र-सर्वत्र देखे जा सकते हैं पर बहुत कम।

यहां एक बात ग़ौर करने वाली यह है कि अर्णव ने अपने देश से दूर रहते हुए भी अपने बच्चों को भारत की संस्कृति से जोड़े रखा उसने अपने बच्चों से वो हर बात शेयर की जो उसने बचपन में अपने मात-पिता के सानिध्य में रहकर सीखी। उसने बच्चों को कभी ये अहस़ास नहीं होने दिया कि वो अपने देश से दूर सात समुंदर पार रह रहें हैं अर्णव ने बच्चों की नींव ठीक उसी तरह तैयार की जिस तरह हमारे भारतीय समाज में बच्चे के जन्म के बाद से ही उसे संस्कारों से जड़ित मालाओं के एक-एक करके मोती पिरोना सिखाया जाता है।

अपने बेहतर कल की लिए चिंतित अर्णव ने ये कदम इसलिए उठाया, क्यो कि वो नहीं चाहता कि उसके बच्चे उसके वृद्ध होने पर किसी वृद्धाश्रम या एक जिंदा शरीर में मृत आत्मा बनाकर उसे दर-दर की ठोकरें खाने को छोड़ दें।

वहीं जब यह बच्चे बड़े होते हैं तो इनके सामने एक ऐसी छद्म दुनिया सामने आती है जिनमें इनके संस्कार, मेहनत, ईमानदारी, और अपने ज्ञान की बदौलत ही आधुनिकता की रंगीन छटा में अपने नैतिक मूल्यों को बचाए रहते हैं। आज हम भले ही कहें की स्कूलों में नैतिक शिक्षा पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है, पर क्या आप कल के भविष्य को अपने चमकदार घरों की दीवारों पर सजे रंगीन चित्रों की तरह रंगीन बनाने का प्रयास कर रहें हैं, ये सवाल आप स्वयं से पूछिए ?

हाल ही में हुए संयुक्त राष्ट्र के एक शोध के आंकड़ों सेयह खुलासा हुआ है कि विश्व में 1950 के दशक में वृद्धजनों में आठ प्रतिशत जनसंख्या 60 वर्ष से ऊपर थी। जो आज करीब 11 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और इस सदी के मध्य तक यह 22 प्रतिशत का इज़ाफा हो जाएगा। जबकि जापान मकाओ और दक्षिण कोरिया में तो यह प्रतिशत 40 तक पहुंचनें की संभावना है।



 बच्चों के मूल्यों को खोने से बचाएं...

• अपने बच्चों को बचपन से ही संस्कारवान बनाएं।
• बच्चों के साथ हर उस बात को शेयर करें जिसे आप समझते हैं कि भविष्य में उसे इस दौर से गुजरना पढ़ सकता है।
• घर में अपने बड़ों से सहजतापूर्ण तरीके से पेश आएं, क्यों कि आपका बच्चा जो देखता है वो सीखता है।
• भारतीय संस्कृति से रू-ब-रू करवाने के लिए बच्चों को समय-समय पर महापुरूषों और वैदिक कथाओं की प्रेरक कहानियां सुनाइए।
• बच्चे अपने घर में जो देखते हैं उसे जल्द ही सीख जाते है, इसलिए घर का माहौल में तनाव नहीं आने दें, क्यों कि इसका सीधा प्रभाव आपके बच्चों पर पड़ता है।
• बच्चों की हर गतिविधियों पर ध्यान दें।
• बच्चों को नए माहौल में जीनें दें पर उस महौल की गलत संगत से उन्हें दूर रखें।
• घर में प्रेरक और अच्छा साहित्य रखें, जो कि बच्चों के ज्ञानवर्धन करें।
• जब उपर लिखे सभी तरीके आप अपनी जिंदगी में उतारेंगे तो बच्चों के सामाजिक मूल्यों में इज़ाफा तो होगा ही साथ ही बेहतर कल की नींव भी मजबूत होगी।

आज के बच्चे कल के बेहतर नागरिक

देश का बेहतर नागरिक वो होता है जो सबसे पहले देश फिर समाज और फिर अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाए। ऐसे में हर उस युवा पर ये दायित्व उसके जन्म लेने के बाद से ही, उसकी जिंदगी के खाते में लिख दिया जाता है, कि वो इन सबमे से किसको ज्यादा तव्जजो देगा। अगर वो इसको ठीक विपरीत क्रम यानि पहले घर फिर समाज और बाद में देश को महत्ता देता है, तो वो अपने उन नैतिक मूल्यों से समझौता कर लेता है, जो उसे उस आधुनिकता की रंगीन दुनिया से मिले हैं जो कि केवल छद्म भर है। बशर्ते अगर वो इन मूल्यों के प्रति अपनी जबावदारी को निभाए।

युवाओं को अपनी जबावदारी का अहस़ास कराने के लिए उन्हें बचपन से दी गईं जिम्मेदारियां मजबूत बनतीं है। अगर वो बचपन से ही घर के कामों, समाज में होने वाली आस-पास की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाता है तो आगे चलकर वो बड़ी भूमिका में भी अपने आपको सहज महसूस करने लगता है। फिर चाहे उस पर कितना भी आधुनिकता का रंग चढ़ जाए वह हमेशा अपने मूल्यों से समझौता नहीं करता।

ठीक इसके विपरीत अगर उस युवा को बचपन से ही ठीक से दिशानिर्देश नहीं दिया गया है तो वो रंगीन दुनिया का रंगीन इंसान बन, इस धुंध में खोकर हर बार मूल्यों से समझौता करता है और हर पर हार के नजदीक पहुंच जाता है। ऐसे लोगों को चाहिए कि वो इन आडबरों के झांसे में न आते हुए कुछ बेहतर करने की कोशिश में जी जान से जुट जाएं।

युवा जो कल के सफल नायक हैं...

• हमेशा आशावादी व्यक्तित्व के बनें, और साकारात्मक विचारों को जगह दें।
• नकारात्मक बातों और अश्लील साहित्य/ पोर्नोग्राफी से दूर रहें।
• अच्छे दोस्त बनाएं क्यों कि आपकी पहचान आपके संपर्क सूत्रों द्वारा ही निर्धारित होती है।
• झूठे प्रलोभनों से बचें, पर उन्हें गंभीरता से लें।
• आज का बेहतर दिन कल का बेहतर भविष्य है इस यूं ही ज़ाया न होनें दें।
• ज्यादा से ज्यादा संपर्क बनाएं, क्यों कि संपर्क ही आपको आपकी मंजिल तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा करते हैं।
• अपने चेहरे की मुस्कुराहाट को बनाए रखते हुए, हर पल को दिल से जिएं।
• जिंदगी एक बार मिलती है इसे यूं हीं बेवजह न गंवाए।
• कुछ ऐसा करें कि आप छा जाएं।

और आखिर में कभी न खत्म होने वाले विषयों में बस यहीं कहना बाकी रहता है कि आज जिस तरह देश में 90 के दशक के बाद से ग्लोबलाइजेशन होना शुरू हुआ ऐसे में हम देश-विदेश के लोगों से तो जुड़े पर अपनी संस्कृति, संस्कार देश पर मर मिटने वाले जज्बे को भूलते गए जिसके चलते आज देश भ्रष्टाचार, और भी कई समस्याओं से जूझ रहा है।

ये सब पहले भी था पर कम और आज इतना ज्यादा है जिसको सिर्फ और सिर्फ हमारे संस्कारों के बल पर कम किया जा सकता है जो कि आप अपने बच्चों और युवा पीढ़ी को किसी न किसी रूप में दे सकें।

                                                             
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