कुछ इस तरह हुई थी 'ईगो' की शुरूआत

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अहंकार को कैसे नष्ट किया जा सकता है? इस प्रश्न का उत्तर हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत सरल तरीके से बताया गया है। सनातन धर्म के ऐसे कई धर्मग्रंथ हैं जहां पौराणिक और लोक कथाओं में अहंकार (ईगो) को पूरी तरह से नष्ट करने का सार छिपा हुआ है।

अहंकार की शुरुआत कैसे हुई? यह बता पाना बेहद मुश्किल है लेकिन पौराणिक तथ्य तो यही कहते हैं जब देवताओं को अहंकार आया तो उनके वरिष्ठ देवों ने अहंकार को तोड़ मन को निर्मल कर दिया। जब विष्णु जी और ब्रह्मा जी को यह अहंकार हुआ कि, 'इस सृष्टि में सबसे बड़े देव वो स्वयं ही हैं?' तब भगवान शिव ने साक्षात् प्रकट होकर उनके अहंकार को दूर किया था।

वैदिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है, एक बार जब श्रीहरि और ब्रह्मा जी ने विचार किया कि इस सृष्टि में सबसे बड़े देव तो वो स्वयं ही हैं। तभी उन्हें एक दिव्य ज्योति दिखाई दी, वह दिव्य ज्योति अनंत पाताल से अनंत आकाश में विलीन थी। तब श्रीहरि और ब्रह्मा जी उसके अंतिम छोर को जानने के लिए ज्योति कि विपरीत दिशाओं में गए। कई वर्षों बाद जब उन्हें उस दिव्य ज्योति का अंतिम छोर नहीं मिला, तब वे पुनः एक दूसरे से मिले।


उस समय तक वो समझ चुके थे कि इस ब्रह्मांड को कोई ओर ही दिव्य शक्ति संचालित करती है। तब वहां देवाधिदेव महादेव प्रकट हुए और उन्होंने उस दिव्य ज्योति का महत्व बताते हुए, श्रीहरि और ब्रह्मा जी के अहंकार का अंत किया।

ये अकेला उदाहरण नहीं है। ऐसे अनेकानेक उदाहरण हिंदू धर्म ग्रंथों में मौजूद हैं। देवी पुराण में उल्लेखित है कि अहंकारी दैत्य महिषासुर का अंत कर मां दुर्गा ने उसके ईगो का अंत किया। अंत में दैत्य को मोक्ष मिला। विष्णु पुराण में वर्णित है कि श्रीहरि के अमिट भक्त प्रह्लाद को जब उसके दैत्य पिता ने मारने की कोशिश की तब श्रीहरि ने नृसिंह रूप लेकर अहंकारी हिरणाकश्यपु का वध किया था।

ठीक इसी तरह नारद पुराण में उल्लेखित है कि जब नारद जी अहंकार के वशीभूत होकर अपने आराध्य श्रीहरि का ही अपमान कर बैठे, तब श्रीहरि ने उनका अहंकार का अंत कर सदा के लिए उनके मन को पवित्र कर दिया था। ऐसी कई पौराणिक कहानियां पुराणों में मौजूद हैं। रामायण के खलनायाक रावण का अंत भी अहंकार के कारण हुआ था। महाभारत में कौरवों का अंत इसी अहंकार के कारण हुआ।

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